राहील सक़लैनी Gazal

नया  पुराना   हर   क़िस्सा  दोहराया   हमने !!
और आख़िर में ख़ुद को मुजरिम पाया हमने !!

उसकी  गलियों   से   सन्नाटा   ले  कर  लौटे !
घर  के  अंदर  आ  कर  शोर  मचाया  हमने !!

मरा  हुआ  हम  ख़ुद  को मान चुके थे लेकिन !
उन  आँखों  में  ख़ुद  को  ज़िन्दा  पाया  हमने !!

दरया   भी   इस   ख़ुद्दारी   से   शर्मिन्दा    है !
उसके   आगे    हाथ   नहीं   फैलाया   हमने !!

राहे    ख़ुदा  में   वाईज़  के  बहकाये   हुये   थे  !
फिर  तो   जाने  कितनों   को बहकाया हमने !!

हाथ मिला  कर जान बचाई  जा  सकती   थी !
लेकिन  अपने   सर  पर  दांव  लगाया  हमने  !!

              -  राहील  सक़लैनी

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